अलंकार और उसके प्रकार
अलंकार
अलंकार का अर्थ है- ‘शोभित या विभूषित करना’। अलंकार द्वारा भाषा को सुन्दर बनाया जाता है।
जिस प्रकार आभूषण स्त्री के सौंदर्य को बढ़ाने में सहायक होते हैं, उसी प्रकार अलंकार काव्य की सुन्दरता को बढ़ाते
हैं। अलंकार के प्रयोग से भाषा आकर्षक एवं प्रभावशाली बनती है।उदाहरण
रघुपति राघव राजा राम ।
चरण कमल बदौं हरि राहि ।
शब्दालंकार के प्रमुख तीन भेद है -
(1) अनुप्रास अलंकार (2) यमक अलंकार (3) श्लेष अलंकार
उदाहरण
तरनी तनुजा तट तमाल तरुवर बहु छाए।
रघुपति राघव राजा राम।
उदाहरण-
तीन बेर खाती थी, ते तीन बेर खाती है।
काली घटा का घमंड घटा।
श्लेष अलंकार
‘श्लेष’ का अर्थ है ‘चिपका हुआ’। जब एक शब्द एक ही बार प्रयुक्त हो, लेकिन उसके दो या अधिक अर्थ निकलते हों, तब श्लेष अलंकार होता है।
उदाहरण -
अर्थालंकार के पाँच भेद होते हैं-
(i) उपमा अलंकार (ii) रूपक अलंकार (ई) उत्प्रेक्षा अलंकार (iv) अतिशयोक्ति अलंकार (v) अन्योक्ति अलंकार
इस वाक्य में कर हाथ उपमेय है।
वाचक शब्द
उपमेय और उपमान में समानता दर्शाने वाला शब्द ‘वाचक’ कहलाता है; जैसे-कर कमल के समान सुंदर है। (समान वाचक शब्द है) सा, से, सी भी वाचक शब्द हो सकते है।
चरण-कमल बंदौ हरिराई।
पायो जी मैंने राम रतन धन पायो।
कर-कमल के समान सुंदर है।
उदाहरण-
नैनन के जल से पग धोए।।
अन्योक्ति अलंकार
जहाँ अप्रस्तुत (जो सामने नहीं है) के द्वारा जो प्रस्तुत है (सामने है) का व्याख्यान किया जाए, वहाँ अन्योक्ति अलंकार होता है।
उदाहरण
माली आवत देखकर, कलियन करी पुकार।
फूले फूले चुन लिए, काल्हि हमारी बार।
अलंकार के मुख्य दो भेद
होते हैं।
(1) शब्दालंकार (2) अर्थालंकार
1. शब्दालंकार
जहाँ कुछ विशेष शब्दों के कारण अर्थ में चमत्कार अत्पन्न होता है। वहाँ शब्दालंकार होता है।
अनुप्रास अलंकार
जहाँ किसी व्यंजन वर्ण की आवृती एक निश्चित रूप से होती हो, वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है।
यमक अलंकार
जहाँ एक ही शब्द की दो या अधिक बार आवृति हो, किंतु उनके अर्थ भिन्न-भिन्न हो, वहाँ यमक अलंकार होता है। जैसे-रहिमन पानी रखिए, बिन पानी सब सून।
पानी गए न उबरे मोती, मानुष, चुन।।
(1) शब्दालंकार (2) अर्थालंकार
1. शब्दालंकार
जहाँ कुछ विशेष शब्दों के कारण अर्थ में चमत्कार अत्पन्न होता है। वहाँ शब्दालंकार होता है।
अनुप्रास अलंकार
जहाँ किसी व्यंजन वर्ण की आवृती एक निश्चित रूप से होती हो, वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है।
यमक अलंकार
जहाँ एक ही शब्द की दो या अधिक बार आवृति हो, किंतु उनके अर्थ भिन्न-भिन्न हो, वहाँ यमक अलंकार होता है। जैसे-रहिमन पानी रखिए, बिन पानी सब सून।
पानी गए न उबरे मोती, मानुष, चुन।।
चरण धरत चिंता करत, चितवत चारों ओर।
सुवरण को खोजत फिरत, कवि, व्यभिचारी, चोर।।
अर्थालंकार
जहाँ कथन विशेष में सौंदर्य अथवा चमत्कार विशिष्ट शब्द प्रयोग पर आश्रित न होकर अर्थ की विशिष्टता के कारण आया हो, वहाँ अर्थालंकार होता है। जैसे-
उपमा अलंकार
जहाँ किसी समान रूप, गुण, धर्म को लेकर दो वस्तुओं, व्यक्तियों की तुलना की जाए, वहाँ उपमा अलंकार होता है। उपमा अलंकार के चार आवश्यक तत्व हैं-
उमपेय
जिस व्यक्ति या वस्तु की तुलना की जाए उसे ‘उपमेय’ कहते हैं; जैसे-कर कमल के समान सुंदर है।
उपमान
जिससे तुलना की जाए उसे ‘उपमान’ कहते हैं; जैसे-कर कमल के समान सुंदर है। इस वाक्य में कमल उपमान है।
अर्थालंकार
जहाँ कथन विशेष में सौंदर्य अथवा चमत्कार विशिष्ट शब्द प्रयोग पर आश्रित न होकर अर्थ की विशिष्टता के कारण आया हो, वहाँ अर्थालंकार होता है। जैसे-
उपमा अलंकार
जहाँ किसी समान रूप, गुण, धर्म को लेकर दो वस्तुओं, व्यक्तियों की तुलना की जाए, वहाँ उपमा अलंकार होता है। उपमा अलंकार के चार आवश्यक तत्व हैं-
उमपेय
जिस व्यक्ति या वस्तु की तुलना की जाए उसे ‘उपमेय’ कहते हैं; जैसे-कर कमल के समान सुंदर है।
उपमान
जिससे तुलना की जाए उसे ‘उपमान’ कहते हैं; जैसे-कर कमल के समान सुंदर है। इस वाक्य में कमल उपमान है।
साधारण धर्म
दो वस्तुओं में जिस गुण के कारण परस्पर तुलना की जाती है। वह ‘साधारण’ या ‘समान धर्म’ कहलाता है। जैसे-कर कमल के समान सुंदर है। इस वाक्य में सुंदर साधारण धर्म है।
रूपक अलंकार
जब उपमेय को उपमान के रूप में दर्शाया जाए या गुणों की समानता के कारण दो वस्तुओं या प्राणियों में समानता दिखाई जाए तो रूपक अलंकार होता है; जैसे-
उत्प्रेक्षा अलंकार
जब उपमेय में उपमान से भिन्नता जानते हुए भी उपमान की संभावना की जाती है, वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। उत्प्रेक्षा अलंकार में शब्दों का प्रयोग किया जाता है। उत्प्रेक्षा अलंकार में मनु, मानहु, जानहु, आदि वाचक शब्दों का प्रयोग किया जाता है।
उस काल मारे क्रोध के, तनु काँपने उसका लगा।
मानों हवा के जोर से, सोता हुआ सागर जगा।
दो वस्तुओं में जिस गुण के कारण परस्पर तुलना की जाती है। वह ‘साधारण’ या ‘समान धर्म’ कहलाता है। जैसे-कर कमल के समान सुंदर है। इस वाक्य में सुंदर साधारण धर्म है।
रूपक अलंकार
जब उपमेय को उपमान के रूप में दर्शाया जाए या गुणों की समानता के कारण दो वस्तुओं या प्राणियों में समानता दिखाई जाए तो रूपक अलंकार होता है; जैसे-
उत्प्रेक्षा अलंकार
जब उपमेय में उपमान से भिन्नता जानते हुए भी उपमान की संभावना की जाती है, वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। उत्प्रेक्षा अलंकार में शब्दों का प्रयोग किया जाता है। उत्प्रेक्षा अलंकार में मनु, मानहु, जानहु, आदि वाचक शब्दों का प्रयोग किया जाता है।
उस काल मारे क्रोध के, तनु काँपने उसका लगा।
मानों हवा के जोर से, सोता हुआ सागर जगा।
निकल रहा है जलनिधि-तल पर दिनकर-बिम्ब अधूरा।
कमला के कंचन-मंदिर का
मानो कान्त कंगूरा।।
अतिशयोक्ति अलंकार
जहाँ किसी गुण का
बढ़ा-चढ़ाकर व्याख्यान किया गया हो, वहाँ अतिशयोक्ति अलंकार होता है।
उदाहरण
उदाहरण
पानी परात को हाय छुओ
नहीं।
नैनन के जल से पग धोये।।
हनुमान की पूँछ में लग न पाई आग।
सारी लंका जरि गई, गए निशाचर भाग।।
अन्योक्ति अलंकार-
जहाँ अप्रस्तुत (जो सामने नहीं है) के द्वारा जो प्रस्तुत है (सामने है) का व्याख्यान किया जाए, वहाँ अन्योक्ति अलंकार होता है।
उदाहरण
नहिं पराग, नहिं मधुर-मधु, नहिं विकास इहि काल।
अली-कली ही से बिध्यो, आगे कौन हवाल।।
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